जब कभी झूठ की बस्ती में, सच को तड़पते देखा है
जब कभी झूठ की बस्ती में, सच को तड़पते देखा हैतब मैंने अपने भीतर किसी, बच्चे को सिसकते देखा है माना तू सबसे
कुछ मेरी क़लम से ~ Kuchh Meri Kalam Se
जब कभी झूठ की बस्ती में, सच को तड़पते देखा हैतब मैंने अपने भीतर किसी, बच्चे को सिसकते देखा है माना तू सबसे
संसद में पीएम मोदी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपनी राजनीतिक बहस में गजल के जो चंद मिसरे पढ़े, उस गजलकार का नाम है
दिन कम हैं जब इस ज़िन्दगी में क्यूँ ना झूमें हर पल खुशी में चल ग़म को भी दे दें मज़ा आ जी